श्री हरिवंश राय जी की कविता मधुशाला और क्यों इस कविता को पाठकों द्वारा इतना पसंद किया जाता है ?
श्री हरिवंश राय बच्चन जी जीवन की गहराई से लिखने वाले कवि थे।वे अपनी कलम को नीली स्याही में डुबाये लिखते चले है गुनगुनाते हुए हुए लिखते चले जाते है, जीवन की नीरस गाथा को उनके अनुसार - विचारों को, हाला का प्याला और मधुशाला संभाले हुए है,मधुशाला एक प्रेमिका की तरह है जो अमृत पिलाने का वादा करके आकर्षित करती है मधुशाला में सभी जाति , धर्म और स्वयं को भूल जाते है ,मधुशाला सभी को अपना लेती है।
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
Mradu bhavon ke anguron ki aaj bana laya hala
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
priytam apne hi haathon se aaj pilaunga pyala
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
pehle bhog laga lun tera fir prasad jag payega
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।1।
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।1।
sabse pehle tera swagat karti meri madhushala
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
Pyas tujhe to, vishv tapakar purn nikalaunga hala
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
ek paanv se saaki bankar nachunga lekar pyala
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
jeevan ki madhuta to tere upaar kab ka vaar chuka
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।2।
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।2।
aaj nichavar kar dunga to tere upar kab ka vaar chuka
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
Priytam tu meri hala hai, main tera pyasa pyala
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीने वाला,
apne ko mujhme bharkar tu banta hai peene wala
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
main tujhko chack chalka karta, mast mujhe pi tu hota
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।3।
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।3।
ek-doosre ki hum dono aaj paraspar madhushala
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
Bhavukta angur lata se kheench kalpna ki hala
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
kavi saaki bankar aaya hai bharkar kavita ka pyala
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
kabhi na kan-bhar khali hoga laakh paiye, do laakh piyen
पाठकगण हैं पीने वाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।4।
पाठकगण हैं पीने वाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।4।
pathakgan hai peene wale, pustak meri madhushala
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
Madhur bhavnaon ki sumadhur nitya banata hoon hala
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
bharta hoon is madhu se apne antar ka pyasa pyala
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
Utha kalpna ke haathon se swayam use pi jata hoon
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीने वाला, मधुशाला।।5।
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीने वाला, मधुशाला।।5।
apne hi me hoon saaki, peenewala, madhushala
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने वाला,
Madiralay jaane ko ghar se chalta hai peene wala
किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
kis path se jaaun? asmanjas me hai vah bholabhala
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
alag-alag path batlate sab par main yh batlata hoon
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। 6।
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। 6।
raah pakad tu ek chala chal, paa jayega madhushala
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
Chalne hi chalne me kitna jeevan, haay, bita dala
दूर अभी है पर, कहता है हर पथ बतलाने वाला,
door abhi hai par kehta hai har path batlane wala
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
himmat hai na badhu aage ko ehsas hai na firu peeche
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।7।
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।7।
kinkartavyavimoodh mujhe kar door khadi hai madhushala
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
Mukh se u avirat kehta ja madhu, madira, madak, hala
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
haaathon me anubhav karta ja ek lalit kalpit pyala
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
dhyan kiye ja man me sumadhur sukhkar, sundar saaki ka,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।8।
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।8।
aur badha chal, pathik, ma tujhko door lagegi madhushala
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
Madira peene ki abhilasha hi ban jaaye jab hala
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
adhron ki aturta me hi jab aabhasit ho pyala
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
bane dhyan hi karte-karte jab saaki sakar, sakhe
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।9।
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।9।
rahe na hala, pyala, saaki, tujhe milegi madhushala
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
Sun, kalkal, chalchal madhughat se girti pyalo me hala
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
Sun, runjhun runjhun chal vitran karti madhu sakibala
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
bas aa pahunche, door nahi kuch, char kadam ab chalna hai
चहक रहे, सुन, पीने वाले, महक रही, ले, मधुशाला।।10।
चहक रहे, सुन, पीने वाले, महक रही, ले, मधुशाला।।10।
chehak rahe, sun, peene wale, mehak rahi, le madhushala
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
Jaltarang bajta, jab chumban karta pyale ko pyala
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
veena jhankrat hoti, chalti jab runjhan saaki bala
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
daant dapat madhuvikreta ki dhwanit pakhavaj karti hai
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।11।
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।11।
Madhurav se madhu ki madakta aur badhati madhushala
मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
Mehandi ranjit mradul hatheli par manik madhu ka pyala
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
anguri avgunthan daale swarn varn saki bala
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीने वाले,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीने वाले,
paag baijni, jama neela dat date peene wale
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।12।
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।12।
indradhanush se hod lagati aaj rangeeli madhushala
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
Haathon me aane se pejle naaj dikhayega pyala
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
adhron par aane se pehle ada dikhayegi hala
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
bahutere inkar karega saaki aane se pehle
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।13।
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।13।
pathik, na ghbra jana, pehle maan karegi madhushala
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
Lal sura ki dhar lapat si keh na ise dena jwala
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
fenil madira hai, mat isko keh dena ur ka chala
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
dard nasha hai is madira ka vigat smratiyan saaki hai
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।14।
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।14।
peeda me aanand jise ho, aaye meri madhushala
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
Jagti ki sheetal hala si pathik, nahi meri hala
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
jagti ke thande pyale sa pathik, nahi mera pyala
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
hwal sura jalte pyale me dagdh hirday ki kavita hai
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।15।
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।15।
jalne se bhaybheet na jo ho, aaye meri madhushala
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
behati hala dekhi, dekho lapat uthati ab hala
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देने वाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देने वाला,
dekho pyala ab chute hi honth jala dene wala
होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
honth nahi sab deh dahe, par peene ko do boond mile
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।16।
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।16।
aise madhu ke deewano ko aaj bulati madhushala
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
Dharmgranth sab jala chuki hai, jiske antar ki jwala
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
mandir, masjid, girje sab ko tod chuka jo matwala
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
pandit, momin, padariyo ke fando ko jo kaat chuka
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।17।
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।17।
kar sakti hai aaj usi ka swagat meri madhushala
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
Lalayit adhron se jisne, haay, mahi chumi hala
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
harsh-vikampit kar se jisne, ha, na chua madhu ka pyala
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
haath pakad lajjit saaki ko paas nahi jisne kheencha
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।18।
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।18।
vyarth sukha daali jeevan ki usne madhumay madhushala
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
Bane pujari premi saaki, gangjal pawan hala
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
rahe ferta avirat gati se madhu ke pyalo ki mala
और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
aur liye ja, aur piye ja, isi mantra ka jaap kare
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।19।
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।19।
main shiv ki pratima ban baithu, mandir ho yh madhushala
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
Baji na mdndir me ghadiyali, chadi na pratima par mala
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
baitha apne bhavan muajjin dekar masjid me atala
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
lute khajane narpatiyon ke giri gadhon ki deeware
रहें मुबारक पीने वाले, खुली रहे यह मधुशाला।।20।
रहें मुबारक पीने वाले, खुली रहे यह मधुशाला।।20।
rahe mubarak peene wale, khuli rahe yeh madhushala
बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोने वाला,
बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोने वाला,
Bade bade parivar mite yon, ek n ho rone wala
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुर बाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुर बाला,
ho jaaye sunsaan mehal ve, jahan thirakti sur bala
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
rajy ulat jaaye, bhupon ki bhgay sulakshmi so jaaye
जमे रहेंगे पीने वाले, जगा करेगी मधुशाला।।21।
जमे रहेंगे पीने वाले, जगा करेगी मधुशाला।।21।
Jame rahenge peene wale, jaga karegi madhushala
सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला,
सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला,
Sab mit jaaye, bana rahega sundar saaki, yam kala
सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला,
सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला,
sukhe sab ras, bane rahenge, kitnu, halahal au hala
धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,
धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,
dhoomdham au chehal-pehal ke sthan sabhi sunsan bane
जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।22।
जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।22।
jaga karega avirat marghat, jaga karegi madhushala
भुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, मदचंचल प्याला,
भुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, मदचंचल प्याला,
Bhura sada kehlayega jag me banka, madchanchal pyala
छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीने वाला,
छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीने वाला,
chail chabeela, rasiya saaki, albela peene wala
पटे कहाँ से, मधु औ' जग की जोड़ी ठीक नहीं,
पटे कहाँ से, मधु औ' जग की जोड़ी ठीक नहीं,
pate kaha se, madhu au jag ki jodi theek nahi
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।23।
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।23।
jag jarjar pratidin, pratishan, par nitya naveli madhushala
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
Bina piye jo madhushala ko bura kahe, veh matwala
पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,
पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,
pee lene par to uske muh par pad jayega tala
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
das drohiyon dono me hai jeet sura ki, pyale ki
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।24।
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।24।
vishvvijayani bankar jag me aai meri madhushala
हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
Hara bhara rehta madiralay, jag par pad jaaye pala
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
Vahan muharram ka tam chaye, yahan holika ki jwala
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
swarg lok se sidhi utri vasudha par, dukh kya jaane
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।।25।
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।।25।
padhe marsiya duniya saari, manati madhushala
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
Ek baras me, ek baar hi jagti holi ki jwala
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
ek baar hi lagti baaji, jalti deepon ki mala
दुनिया वालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दुनिया वालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
duniya walon, kintu, kisi din aa madiralay me dekho
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।26।
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।26।
din ko holi, raat diwali, roj manati madhushala
नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीने वाला,
नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीने वाला,
Nahi janta koun, manuj aaya bankar peene wala
कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,
kon apirichat us saaki se, jisne doodh pila pala
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
jeeevan pakar manav peekar mast rahe is karan hi
जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।।27।
जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।।27।
jag me akar sabse pehle paai usne madhushala
बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,
बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,
Bani rahe angoor lataye jinse milti hai hala
बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,
bani rahe veh mitti jisse banta hai madhu ka pyala
बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,
बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,
bani rahe veh madir pipasa trapt na jo hona jaane
बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला।।28।
बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला।।28।
bane rahe ye peene wale, bani rahe yeh madhushala
सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यदि साकी बाला,
सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यदि साकी बाला,
Sakushal samjho mujhko, sakushal rehti yadi saaki wala
मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,
मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,
mangal aur amangal samjhe masti me kya matwala
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो आकर, पर मधुशाला की,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो आकर, पर मधुशाला की,
mitron, meri shem ma pucho akar, par madhushala ki
कहा करो 'जय राम' न मिलकर, कहा करो 'जय मधुशाला'।।29।
कहा करो 'जय राम' न मिलकर, कहा करो 'जय मधुशाला'।।29।
kaha karo 'jay ram' na milkar, kaha karo 'jay madhushala'
सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
Surya bane madhu ka vikreta, sindhu bane ghat, jal, hala
बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,
बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,
Badal ban-ban aaye saaki, bhumi bane madhu ka pyala
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
jhadi lagakar barse madira rimjhim, rimjhim, rimjhim kar
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।30।
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।।30।
beli, vitap, tran ban main piyun, varsha ritu ho madhushala
तारक मणियों से सज्जित नभ बन जाए मधु का प्याला,
Tarak maniyo se sajjit nabh ban jaaye madhu ka pyala
सीधा करके भर दी जाए उसमें सागरजल हाला,
सीधा करके भर दी जाए उसमें सागरजल हाला,
seedha karke bhar di jaye usme sagarjal hala
मत्त समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए,
मत्त समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए,
Matt samiran saaki bankar adhron par chalka jaaye
फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।।31।
फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।।31।
faile hon jo sagar tat se vishv bane yeh madhushala
अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला,
अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला,
Adhron par ho koi bhi ras jivha par lagti hala
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
bhajan ho koi haatho me lagta rakkha hai pyala
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,
har surat saaki ki surat me parivartit ho jati
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।32।
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।।32।
aankho ke aage ho kuch bhi, aankho me hai madhushala
पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला,
पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला,
Poudhe aaj bane saki le le phoplon ka pyala
भरी हुई है जिसके अंदर पिरमल-मधु-सुरिभत हाला,
भरी हुई है जिसके अंदर पिरमल-मधु-सुरिभत हाला,
bhari hui hai jiske andar pirmal-madhu-surbhit hala
माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं,
माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं,
maang maangkar bhramaron ke dal ras ki madira peete hain
झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!।33।
झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!।33।
jhoom jhapak mad-jhampit hote, upvan kya hai madhushala
प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला,
छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला,
छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली
हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।34।
मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला
भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला,
हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ,
छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।।35।
साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,
तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।।36।
उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,
बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला,
जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।37।
अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला
किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।38।
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला,
किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी
किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।39।
प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला,
छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला,
छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली
हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।।34।
मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला
भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला,
हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ,
छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।।35।
साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,
तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।।36।
उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,
बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला,
जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।।37।
अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला
किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।।38।
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला,
किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी
किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।।39।
साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला,
जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।40।
जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।।40।
वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।41।
चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,
मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।42।
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।।41।
चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,
मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।।42।
घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,
हंस मत्त होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।43।
हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।44।
धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,
वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,
स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।।45।
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।46।
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।47।
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।48।
बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।49।
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।50।
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।51।
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,
हंस मत्त होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।।43।
हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।।44।
धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,
वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,
स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।।45।
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।46।
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।47।
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।।48।
बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।49।
मुसलमान औ' हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।50।
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।51।
और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला,
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,
कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।52।
आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,
आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
जहाँ अभी हैं मन्दिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।53।
यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।54।
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।।54।
सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।।55।
वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,
रंभा की संतान जगत में कहलाती 'साकीबाला',
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।।56।
कभी न सुन पड़ता, 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।57।
श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,
ठुकराते हैं मंदिरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।।58।
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।57।
Madhushala in hindi
श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,
ठुकराते हैं मंदिरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।।58।
एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।59।
बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।60।
कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला
हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,
आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।61।
आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला
आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।62।
आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,
भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,
और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।63।
सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला
छलक रही है जिसमें माणिक रूप मधुर मादक हाला,
मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।64।
दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ - अदाई मधुशाला।।65।
छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।66।
क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
क्या जीना, निश्चिंत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।67।
मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,
सिंधु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।।68।
क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,
क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,
थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,
प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।69।
लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।70।
कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,
जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।71।
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।।59।
बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।।60।
कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला
हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,
आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।61।
आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला
आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।62।
आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,
भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,
और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।63।
सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला
छलक रही है जिसमें माणिक रूप मधुर मादक हाला,
मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।64।
दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ - अदाई मधुशाला।।65।
छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।66।
क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
क्या जीना, निश्चिंत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।67।
मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,
सिंधु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।।68।
Madhushala lyrics
क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,
क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,
थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,
प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।69।
लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।70।
कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,
जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।71।
ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,
गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,
दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।72।
क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।।73।
प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,
जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।74।
गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,
दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।72।
क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।।73।
Madhushala song
प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,
जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।74।
अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला,
क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,
तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,
हमें नरक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।75।
यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।76।
क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,
तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,
हमें नरक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।75।
यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।76।
यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।।77।
याद न आए दुखमय जीवन इससे पी लेता हाला,
जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,
शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,
पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।।78।
गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,
रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।79।
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।80।
ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले
कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।।81।
मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।82।
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।83।
और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।84।
नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।85।
ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।।86।
यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।।77।
याद न आए दुखमय जीवन इससे पी लेता हाला,
जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,
शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,
पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।।78।
गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,
रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।79।
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।80।
ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले
कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।।81।
मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।82।
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।83।
और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।84।
नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।85।
ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।।86।
यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,
स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।।87।
पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों - साकी बाला,
नित्य पिलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला,
साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है,
कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।88।
शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
'और, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,
कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।।89।
जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।90।
स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।।87।
पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों - साकी बाला,
नित्य पिलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला,
साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है,
कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।88।
शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
'और, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,
कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।।89।
मधुबाला कविता
जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।90।
देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला,
'बस अब पाया!'- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे,
किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।।91।
कभी निराशा का तम घिरता, छिप जाता मधु का प्याला,
छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला,
कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जाती,
आँख मिचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।।92।
देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला,
'बस अब पाया!'- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे,
किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।।91।
कभी निराशा का तम घिरता, छिप जाता मधु का प्याला,
छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला,
कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जाती,
आँख मिचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।।92।
'आ आगे' कहकर कर पीछे कर लेती साकीबाला,
होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती प्याला,
नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी,
बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे, पीछे हटती मधुशाला।।93।
हाथों में आने-आने में, हाय, फिसल जाता प्याला,
अधरों पर आने-आने में हाय, ढुलक जाती हाला,
दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,
रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला।।94।
प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला,
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,
दूर न इतनी हिम्मत हारुँ, पास न इतनी पा जाऊँ,
व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।।95।
मिले न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला,
मिले न, पर, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला,
हाय, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई
'दूर रहेगी मधु की धारा, पास रहेगी मधुशाला!'।96।
होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती प्याला,
नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी,
बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे, पीछे हटती मधुशाला।।93।
हाथों में आने-आने में, हाय, फिसल जाता प्याला,
अधरों पर आने-आने में हाय, ढुलक जाती हाला,
दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,
रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला।।94।
प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला,
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,
दूर न इतनी हिम्मत हारुँ, पास न इतनी पा जाऊँ,
व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।।95।
मिले न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला,
मिले न, पर, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला,
हाय, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई
'दूर रहेगी मधु की धारा, पास रहेगी मधुशाला!'।96।
मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला,
यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,
मानव-बल के आगे निर्बल भाग्य, सुना विद्यालय में,
'भाग्य प्रबल, मानव निर्बल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला।।97।
किस्मत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं प्याला,
ढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनी, किस्मत में थी मृगछाला,
किसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खाया,
किस्मत में था अवघट मरघट, ढूँढ़ रहा था मधुशाला।।98।
उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।99।
साकी के पास है तनिक सी श्री, सुख, संपित की हाला,
सब जग है पीने को आतुर ले ले किस्मत का प्याला,
रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,
जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।।100।
साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
क्यों पीने की अभिलषा से, करते सबको मतवाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।101।
साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,
पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,
जीवन भर का, हाय, पिरश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।102।
जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,
जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,
मतवालों की जिह्वा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,
दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।103।
नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।104।
मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।105।
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।106।
देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,
देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,
समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,
किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।107।
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,
भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,
छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।108।
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,
भाँति भाँति का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।109।
एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,
एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,
एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,
आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।110।
जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।111।
कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।112।
बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।113।
छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला,
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।114।
यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।115।
कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।116।
कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।117।
दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।।118।
मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।119।
किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,
'भाग्य प्रबल, मानव निर्बल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला।।97।
किस्मत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं प्याला,
ढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनी, किस्मत में थी मृगछाला,
किसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खाया,
किस्मत में था अवघट मरघट, ढूँढ़ रहा था मधुशाला।।98।
उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।99।
साकी के पास है तनिक सी श्री, सुख, संपित की हाला,
सब जग है पीने को आतुर ले ले किस्मत का प्याला,
रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,
जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।।100।
साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
क्यों पीने की अभिलषा से, करते सबको मतवाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।101।
साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,
पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,
जीवन भर का, हाय, पिरश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।102।
जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,
जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,
मतवालों की जिह्वा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,
दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।103।
मधुशाला कविता
नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।104।
मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।105।
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।106।
देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,
देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,
समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,
किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।107।
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,
भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,
छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।108।
बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,
भाँति भाँति का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।109।
एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,
एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,
एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,
आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।110।
जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।111।
कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।112।
बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।113।
छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला,
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।114।
यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।115।
कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।116।
कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।117।
दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।।118।
मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।119।
किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,
अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।120।
वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,
जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।121।
मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।122।
मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छूंछा प्याला,
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!
बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।123।
कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,
कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।124।
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।125।
'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'
'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी
'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।126।
कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,
कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,
फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।127।
जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।128।
जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,
जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।129।
हर जिव्हा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला
हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।130।
मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।131।
यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं-नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।132।
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।120।
वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,
जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।121।
मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।122।
मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छूंछा प्याला,
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!
बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।123।
कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,
कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।124।
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।125।
'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'
'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी
'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।126।
कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,
कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,
फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।127।
जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।128।
जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,
जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।129।
हर जिव्हा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला
हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।130।
मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।131।
यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं-नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।132।
कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।133।
विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।134।
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।133।
विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।134।
बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।135।
पिरिशष्ट से
स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला,
स्वयं नहीं छूता, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला,
पर उपदेश कुशल बहुतेरों से मैंने यह सीखा है,
स्वयं नहीं जाता, औरों को पहुंचा देता मधुशाला।
मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला,
मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला,
पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,
मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।
बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।135।
पिरिशष्ट से
स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला,
स्वयं नहीं छूता, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला,
पर उपदेश कुशल बहुतेरों से मैंने यह सीखा है,
स्वयं नहीं जाता, औरों को पहुंचा देता मधुशाला।
मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला,
मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला,
पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,
मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।
बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला,
बहुतों के हाथों में दो दिन छलक झलक रीता प्याला,
पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही
और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।
पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी
तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।
- हरिवंशराय बच्चन Harivansh Ray Bachchan
पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही
और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।
पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी
तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।
- हरिवंशराय बच्चन Harivansh Ray Bachchan